अधीन विचार
वक्त के आधीन/
झुके हुए/
उन गुलामों की तरह/
तुम्हारे शब्द/
हरदम मायूसी लिए/
बारिश में भीगे फूस के छप्पर की तरह भारी/
महानता का लटकता चोगा पहने/
यदा-कदा काया दिख जाती उसमें/
खांसीकर बाहर आये बलगम के जैसे/
तुम्हारे विचार/
शायद अब समय आ गया है/
दावा-दारु दोनों ही करवा लो विक्षिप्त/
यह बिमारी बढ़ने से पहले फैला करती है/
संक्रमण से भरी छाती सी/
तुम्हारी सोच/
विशाणुओं का जड़ से खत्म जरुरी है/
@गुंजन झाझरिया
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