पुतला
बाँट दी कद की लम्बाई,
क्यों रहे कोई ऊँचा-नीचा,
या खारा-मीठा,
सबकी चाय में बराबर शक्कर,
मधुमेह मिटने लगेगा,
नीम के पत्ते खाने से अच्छा तला हुआ स्वादिष्ट करेला ही है,
कडवे की सीमा बढ़कर,
जहर बनाती है।
कहाँ है कायदा कानून लिखा,
उस दिन रात चलती प्रकृति का,
चूक नहीं होती किसी क्रियाकलाप में,
क्यों मानव ही गलती दोहराता,
लिख कर रखता है हर नियम,
बाँध देता है संभावनाएं,
तय रहता सबकुछ,
तभी शायद बन जाता है पुतला,
पुतला तो गलती करेगा ही,
कहाँ जान पायेगा तरीका सही,
जान गया कभी,
तो डोर नहीं हिलने देती इंच भी...
उठने-सोने-नहाने-खाने,
यहाँ तक प्रेम जताने,
जताना नहीं प्रेम करने,
और तो और,
प्रेम निभाने,
उससे भी ऊपर,
रोने- मुस्कुराने के लिए,
लदे हैं "बुलेट पॉइंट्स",
घर की दीवारों, फ्रिज, टीवी, मोबाइल्स के भीतर-बाहर,
लगभग तो रोबोट बनाने में सफलता मिल ही गयी,
पर कुछेक प्रतिशत बाकी है,
सौ प्रतिशत परिणाम में।
सही सफल परिणाम आने के बाद,
गलतियों के हजार बार दोहराने का दौर शुरू हो जाएगा।
© गुंजन झाझरिया
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