रविवार, मार्च 23

दैवीय प्रेम

निःस्वार्थ,
ना तुम हो पाए,
ना मैं।
मुझे तुम्हारा सुख चाहिए था,
तुम्हें मेरे रंग सहेजने थे।
और इस तरह,
हम दोनों मनुष्य ही रह गये।
# वरना हमारा प्रेम तो दैवीय था।
© गुंजन झाझारिया

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