दैवीय प्रेम
निःस्वार्थ,
ना तुम हो पाए,
ना मैं।
मुझे तुम्हारा सुख चाहिए था,
तुम्हें मेरे रंग सहेजने थे।
और इस तरह,
हम दोनों मनुष्य ही रह गये।
# वरना हमारा प्रेम तो दैवीय था।
© गुंजन झाझारिया
लेबल: मेरी कविता
प्रेम के जहाँज पर सवार होकर उड़ने वाली एक लड़की की डायरी।
निःस्वार्थ,
ना तुम हो पाए,
ना मैं।
मुझे तुम्हारा सुख चाहिए था,
तुम्हें मेरे रंग सहेजने थे।
और इस तरह,
हम दोनों मनुष्य ही रह गये।
# वरना हमारा प्रेम तो दैवीय था।
© गुंजन झाझारिया
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