mere vraksha
जब मैंने देखी चौड़ी - चौड़ी सड़कें मेरे देश में,
तो ख़ुशी हो गई बहुत मेरे मन को ,
परन्तु ऐसे ही किसी कोने में पड़े उन हरे भरे वृक्षों पर नजर पड़ी तो
मौन हो गया मन , उनके गिरते आंसू दिखाई दे रहे थे मुझे.
मानो वो मुझसे कह रहे हो कि तुम्हारा इतना ख्याल रखा, तुम्हे इतना प्यार दिया,
आज क्यों काट कर फेंक दिया और क्यों खुश हो गयी तू हम पर हुए इस अत्याचार से?
काँप गयी अन्दर तक मैं , कौन लेगा जिम्मेदारी मेरी धरती माँ की?
वो कितनी उदास ह, और एक दिन हमे जब जरुरत पड़ेगी उसकी तो वो नाराज हो जाएगी,
नहीं देगी साथ
वो हमारा और रह जायेंगे हम इंसान अकेले.
मेरा भारत महान
बन रहा है और विकसित हो रहा है,
पर ये कैसा विकास है?
ना तो कोई वापस मेरे प्यारे वृक्षों को लगाएगा ,
ना कोई बीज बोयेगा
बस बनती हुए सड़क और मेट्रो को देखकर ही खुश हो जायेंगे और भूल जायेगे की क्या खो दिया हमने
पर जब जरुरत पड़ेगी तो २ साल में कहा से लायेंगे इतने दोस्त, इतने रक्षक ,इतने सारे सेवक
मत करो ना तुम ऐसा
मत भूलो उस अहसान को
जो खड़े थे हर एक राह में तुम्हारे साथ
और हमेशा थामेंगे तुम्हारा हाथ
ना भूलो तुम उनको,
याद रखो १-२ मैं बोउ और १-२ तुम बो दो.
ना समय लगेगा इतना,
ना आएगा कोई खर्च
फायदा भी है आपका
भविष्य बन जायेगा उज्जवल
आपके बच्चो का.
-गुंजन झाझरिया
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