जीवन का पहला दिन और तेरा साथ
भयभीत, अचंभित
जीवन का पहला दिन!!
बाहर का प्रकाश
चुभ न जाये कही,
इस कोमल शरीर को
तेरी छाया की जरुरत है,
बस तू जानती थी माँ.
तू जब काम पर जाती थी,
शब्द नहीं थे,
पर अपने रुदन से
"ना जा "
कहना चाहती थी
बस तू जानती थी माँ.
सिखाई तुने जब आँखों की
भाषा
क्या है मेरे मन में तेरे लिए
ये जानना चाहती थी
परन्तु उस बातचीत में
बड़ा सुख मिलता था
बाल मन को,
बस तू जानती थी माँ
दूर से जब आती दिखाई देती,
लड़खड़ाते कदमो से गिर जाती,
दो कदम और चल सकती थी,
पर तेरी गोद
में आना की जल्दी थी,
बस तू जानती थी माँ.
मालिश करती, नहलाती,
काजल का टीका लगाती,
फिर निहार कर खुद ही मुस्कुराती,
पानी और साबुन से खेलना
भाता था मुझको
बस तू जानती थी माँ
"मी "
बोला जब पहली बार,
मम्मी कह कर पुकारा था,
बस तू जानती थी माँ
"घर- घर" खेलने में
जब रात हो जाती थी
दरवाजे पर तू,
हाथ में छड़ी लिए दिखाई देती
तेरी वो मार कई मात से बचाएगी
बस तू जानती थी माँ
मेरे हाथ पर
मेहंदी का रुपया बनाकर
मुझे अपने हाथ से खिलाती थी,
भाई के सो जाने पर
जब मेरे पास सो जाती
अबोध मन को
नींद में भी तेरी राह है,
बस तू जानती थी माँ
मेरी हर जिद में,
हर इच्छा में
तेरी हाँ की जरुरत है
कैसे पापा से
सिफारिश करनी है,
बस तू जानती थी माँ.
आज बरसो बाद
जब पड़ोसन ने कहा
आपके चेहरे पर झुर्रिया
आ गई हैं,
मेरे लिए जीवनसाथी
खोजने की परेशानी में
आई सलवटे हैं वो,
बस तू जानती थी माँ
ना जाने कितने जूठ बोले
हैं तुझसे,
आँखों की भाषा में
निपुण तू,
खुलासा करके कही
मेरे सम्मान को चोट ना आये,
तुझे मालूम है,
ये मुझे ना बताया
बस तू जानती थी माँ
आज उम्र हो गई है,
परन्तु मेरा मन
बालक है,
आज भी डर है उसी
धुप से झुलसाने का
इसी वजह से रोज
लडती है,
हर रोज काम करते-करते
मेरी याद में तेरी आंखे
गीली हो जाती हैं
जीवन के पहले दिन की
तरह..
तेरी छाया की जरुरत
अब भी है
बस तू जानती है माँ
जीवन का पहला दिन!!
बाहर का प्रकाश
चुभ न जाये कही,
इस कोमल शरीर को
तेरी छाया की जरुरत है,
बस तू जानती थी माँ.
तू जब काम पर जाती थी,
शब्द नहीं थे,
पर अपने रुदन से
"ना जा "
कहना चाहती थी
बस तू जानती थी माँ.
सिखाई तुने जब आँखों की
भाषा
क्या है मेरे मन में तेरे लिए
ये जानना चाहती थी
परन्तु उस बातचीत में
बड़ा सुख मिलता था
बाल मन को,
बस तू जानती थी माँ
दूर से जब आती दिखाई देती,
लड़खड़ाते कदमो से गिर जाती,
दो कदम और चल सकती थी,
पर तेरी गोद
में आना की जल्दी थी,
बस तू जानती थी माँ.
मालिश करती, नहलाती,
काजल का टीका लगाती,
the most beautiful women i have ever seen |
पानी और साबुन से खेलना
भाता था मुझको
बस तू जानती थी माँ
"मी "
बोला जब पहली बार,
मम्मी कह कर पुकारा था,
बस तू जानती थी माँ
"घर- घर" खेलने में
जब रात हो जाती थी
दरवाजे पर तू,
हाथ में छड़ी लिए दिखाई देती
तेरी वो मार कई मात से बचाएगी
बस तू जानती थी माँ
मेरे हाथ पर
मेहंदी का रुपया बनाकर
मुझे अपने हाथ से खिलाती थी,
भाई के सो जाने पर
जब मेरे पास सो जाती
अबोध मन को
नींद में भी तेरी राह है,
बस तू जानती थी माँ
मेरी हर जिद में,
हर इच्छा में
तेरी हाँ की जरुरत है
कैसे पापा से
सिफारिश करनी है,
बस तू जानती थी माँ.
आज बरसो बाद
जब पड़ोसन ने कहा
आपके चेहरे पर झुर्रिया
आ गई हैं,
मेरे लिए जीवनसाथी
खोजने की परेशानी में
आई सलवटे हैं वो,
बस तू जानती थी माँ
ना जाने कितने जूठ बोले
हैं तुझसे,
आँखों की भाषा में
निपुण तू,
खुलासा करके कही
मेरे सम्मान को चोट ना आये,
तुझे मालूम है,
ये मुझे ना बताया
बस तू जानती थी माँ
आज उम्र हो गई है,
परन्तु मेरा मन
बालक है,
आज भी डर है उसी
धुप से झुलसाने का
इसी वजह से रोज
लडती है,
हर रोज काम करते-करते
मेरी याद में तेरी आंखे
गीली हो जाती हैं
जीवन के पहले दिन की
तरह..
तेरी छाया की जरुरत
अब भी है
बस तू जानती है माँ
लेबल: मेरी कविता
2 टिप्पणियाँ:
"घर- घर" खेलने में
जब रात हो जाती थी
दरवाजे पर तू,
हाथ में छड़ी लिए दिखाई देती
तेरी वो मार कई मात से बचाएगी
बस तू जानती थी माँ
bahut pyaari si nischal rachna hai aapki..
maa ka aashirvaad hamesha rahe aap par..badhai..good wishes
MAA TO AAKHIR MAA HAI . . . MAA TUJHE SLAAM, . . . . JAI HIND JAI BHARAT
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