सोमवार, फ़रवरी 14

पहली बात : मैं अपनी प्रेमिका को स्वतंत्रता देता हू.
ये बात ही गलत है. अपनी प्रेमिका को स्वतंत्रता देने वाले तुम होते कौन हो?
तुप प्रेम कर सकते हो, प्रेम का अर्थ है स्वतंत्रता.


तो पहली बात तो यही है की तुम स्वतंत्रता देना नहीं चाहते, तुम सदा चाहोगे की ऐसी परिस्थिति ही
ना बने, जब तुम्हे स्वतंत्रता देनी पड़े.
तुम एक पीड़ादायी परिस्थिति में हो.
अगर तुम स्वतंत्रता नहीं देते हो तो तुम्हे अपने पर शक होंव लगता है.
अगत तुम स्वतंत्रता देते हो , जो की जो की तुम नहीं दे सकते, तुम्हे अहंकार घेर लेता है.

और यही अहंकार हजारो प्रश्न उठाएगा.
यह बात पीड़ा तो देती है किन्तु सत्य है
की तुम्हारे प्रेम को तुम्हारी आज्ञा की आवश्यकता नहीं है.


प्रश्न है की : हम है कौन?
सभी अजनबी जो अचानक किसी संयोग से किसी मोड़ पर आ मिलते हैं.
तो फिर किस आधिकार से ये बोल फूटते हैं की मैं तुम्हे स्वतंत्रता दुगा ये दूंगी.


स्वतंत्रता तो जन्मसिद्ध अधिकार है.
और मेरा प्रेम इसे छीन नहीं सकता.
तुम ये नहीं कह सकते मैं तुम्हे स्वतंत्रता दूंगा.

ये मत भूलो की तुम अजनबी थे .
तुम रास्ते पर मिले अचानक,
और उसने तुम्हारा प्रेम गरिमा पूर्वक स्वीकार किया.
बस अनुग्रहित हो जाओ,
उसे अपना जीवन जीने दो और खुद अपना जिओ.


प्रेम वो है जो
तुम्हारे तनाव, तुम्हारी चिंताएं , तुम्हारी वेदना को कम करने
में और तुम्हे अधिक उल्लासपूर्ण बनाने में
सहायक है.
परन्तु जो इस संसार में हो रहा है,
उसमे प्रेम इतना दुःख देने वाला और पीड़ादायी है
की लोग अंत में यही निर्णय लेते है की
प्रेम में नहीं पड़ना अब.


परन्तु प्रेम के प्रति द्वार बंद करना
सत्य के प्रति, अस्तित्व के प्रति
द्वार बंद करने जैसा है.




प्रेम के दिन पर
मेरा ये छोटा सा सन्देश.
(ओशो के विचारो से प्रभावित)
प्रेम का असली मतलब जानो
प्रेम बांटो और बाँटने दो.




अपने हृदय के द्वार बंद मत करो.
गुंजन झाझारिया 

3 टिप्पणियाँ:

यहां सोमवार, फ़रवरी 14, 2011, Blogger Sushil Bakliwal ने कहा…

सार्थक संदेश.

 
यहां सोमवार, फ़रवरी 14, 2011, Blogger Sushil Bakliwal ने कहा…

सार्थक संदेश.

 
यहां सोमवार, फ़रवरी 14, 2011, Blogger गुंज झाझारिया ने कहा…

dhanyawaad sushil ji

 

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