नादाँ थे हम,जो बेफिक्र बैठे थे,
जब बोये जिंदगी भर फूल है
तो कांटे क्यों काटेगे?
ग़लतफ़हमी थी हमारी "गुंजन",
यहा अपनों का बोया भी काटना
पड़ता है!-----------G.J
यहा अपनों का बोया भी काटना
पड़ता है!-----------G.J
लेबल: दुनिया के रंग
प्रेम के जहाँज पर सवार होकर उड़ने वाली एक लड़की की डायरी।
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