रविवार, जुलाई 29

काश ऐसा भी कोई चूरन होता


काश ऐसा भी कोई चूरन होता जो ,
संकीर्ण मानसिकता का इलाज़ करता..
रोते-रोते इंसान को हंसा जाता,,
जिंदगी की मिठास को चखा जाता..
बिकता खूब धूम-धाम से,
जो एक मुस्कान का मोल बता जाता..

काश ऐसा भी कोई चूरन होता जो,
चोरी, सीनाजोरी को बेकार कह जाता..
झूठ के कीड़े से लड़ता,
स्रष्टि का ध्येय बता जाता..
होगी तब विज्ञानं की पूजा,
वो इंसानियत जगा जाता..

copyright@ गुंजन झाझरिया "गुंज"

लेबल:

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ