मैं सचमुच स्तब्ध हूँ
हाँ तो क्या कह रहे थे तुम,
कि अब समय नहीं दे पाओगे?
ऐसे प्रेम की चाह तो मुझे कतई न थी!
इतने अरमान ही क्यों सजाये?
प्रिये.
मैं सचमुच स्तब्ध हूँ तुम्हारी इन बातो से..
प्रेम जैसे असीमित आकाश को कैसे बांधती??
अगर कोई प्रेम में होकर,
साथी के संग अपने भविष्य की कल्पना न करे,
कुछ शब्द प्रेम के न सुने,
हफ्तों बाद साथ मिला पूरा दिन भी कम न लगे,
तो क्या तुम उसे प्रेम का दर्जा दोगे?
अब भी मैंने तुम्हारी भावनाओं पर सवाल नहीं उठाये हैं..
जब इंतज़ार ही करना है तो
अलग होकर करने में मज़ा है..
तुम्हारे होते हुए इंतज़ार करना मुझे नहीं भाता,
तुम साथ रहोगे.
मैं और सपने बुनुंगी,
मेरे अंदर के उठते वेग को कैसे संभालोगे?
शिकायतों का दौर बढ़ता जाएगा..
मेरा प्रेम तुम्हें बस इच्छाओं का दरिया नजर आएगा..
जब तक तुम इन बातों में बुद्धि लगाओगे,
अहसासों के पेट्रोल पर चलने वाली गाड़ी कैसे आगे बढ़ेगी,
जानते हो तुम, मेरे अंदर उथल-पुथल मची है,
फिर शांत कैसे रह सकते हो?
जब गिरने लगती हूँ,
क्यों अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाते हो?
अब क्या सिर्फ मैं ही बोलूंगी?
तुम तो कुछ बोलो.
या अब भी अपना दिमाग लगा रहे हो?
क्या बोलना उचित है, क्या नहीं?
अगर मैं गलत हूँ तो सही बतलाओ,
या फिर ये तुम्हारा अहम है ?
हाँ, अहम ही तो है..
तुमने कहा है अलग होने को,
जाओ रहो अलग..
मैं भी देखता हूँ, कैसे रहोगी मेरे बिना..
मैं तो सुकून से ही जीऊँगी ,
समर्पण तो मैंने जान ही लिया है..
आखिरी बातों में भी मेरा अहम आड़े नहीं आया..
इंतज़ार करुँगी उस दिन का,
जब तुम इस गाड़ी में एक बार फिर पेट्रोल भरोगे,
जैसे आरम्भ में भरा था,
काफी मीलों तक कैसे बिना रुके चली थी !!!!
गुंज झाझारिया copyright..
लेबल: मेरी कविता
7 टिप्पणियाँ:
अति सुंदर .....गहरा एहसास ...
अति सुंदर .....गहरा एहसास
धन्यवाद...:)
वाह ... बहुत खूब ।
बहुत कोमल एहसास.....
अनु
प्रेम रुपी पौधे को पनपने और फलने फूलने के लिये एक दुसरे के सानिध्य रुपी खाद आवश्यक है.
सुंदर मनोभाव खूबसूरत कविता.
आंह...आप सभी की प्रतिक्रिया पढ़ के मन बाग बाग हो गया...:)
यूँ ही साथ देते रहिएगा..
सदा, अनु, और रचना जी...स्वागत है..:)
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