गूँज की शायरी
1)मुझे भाती नहीं हैं मुस्कुराहटें,
कि 'गूँज'आजकल,
नकल-असल में फर्क नहीं।
2)दुआएं जो असरदार होती,
ए-माँ आज,
'गूँज' तेरी मालामाल होती।
3)नियम कायदों में क्या रखा है,
कि 'गूँज'
कतार बनाकर चलना,
भेड़ भी जानती है।
4) जवाब देना ना आये तुझे,
दुनिया दूसरे दिन गायब कर दे,
जो सही जगह पर मिले छुपा,
'गूँज' वो पत्थर नायाब कह दे।
© गुंजन झाझारिया
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1 टिप्पणियाँ:
धन्यवाद राजीव जी
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