mahabharat
उठा लिया शस्त्र अब,
प्रहार करने को अर्जुन तैयार है.
बजा शंख-म्रदंग है,
हिनहिनाने लगे अब रथ भी.
क्यों डरा-२ सा है,
क्यों कापते तेरे हाथ आज,
विचार मन में आया क्या?
काला बादल बेमौसम छाया क्यों?
आई माथे पर क्यों सलवटें
जब कृष्ण तेरे साथ है?
आज ना कोई बंधू है,
ना कोई अपना तेरा..
सत्य और असत्य के
दव्न्दवा में तू उतर चला.
ललकार असत्य को,
उपहार दे तू सत्य को,
चदा त्योंरिया माथे पर
इशारा कर दे सारथि को,
बड़ा चल बस सामने.
जो खड़ा हो सामने,
आँख में डाल आँख तू,
काट-काट कर एक एक को
सत्य को तू जोड़ दे
होगा धनुष बाण
के इस युद्ध में जीतना तुझे
ये ललकार है या विश्वास
तुझपे,
तय करेगा बस अंत ही.
आखरी छोर पर ही
रुकेगा ये रथ तेरा,
ठान लिया है कृष्ण ने.
इस बीच में करना क्या तुझे,
.
इस बीच में
करना क्या तुझे
ये सोचना ही तो
तेरा बस काम ह
निर्नय ले तू अभी,
ना चूकना लक्ष्य से
अडिग, अटल रहना होगा
इस महाभारत के युद्ध में
कृष्ण सारथि बना तो
मैं भी तयार हु,
सत्य को सजाने चला
फड़कती बाजू मेरी
द्रिधा है इरादा और
धधकती कोई आग है
कदम ना डगमगाएगा
उस छितिज पर पहुच कर ही
मुझे साँस आएगा
अर्जुन
कहा इतिहास ने
अब भविष्य में
योद्धा-अर्जुन कहलायेगा.
.
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1 टिप्पणियाँ:
nice poem dear......aap bhut hi sundar likhti hai
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