गूंज हूँ मैं...
गूंज हूँ मैं...
जो गूंजती हैं,
लहरों की चाल से,
बदली की झंकार से!
जो गूंजती हैं,
लहरों की चाल से,
बदली की झंकार से!
गुंजन करना सिखा मैंने,
बचपन के संसार से!
पापा-मम्मी के दुलार से!
भाई के गुस्से के जवाब से!
गूंज हूँ मैं,
हवा में उड़ती मछलियाँ,
जमीन पर चलता चिड़िया का
झुण्ड.
२ दिन का बोलता बच्चा,
और २५ की उम्र में
तुतलाता इंसान>>>>
जो तुमने नहीं देखा कभी,
मेरी नजरो ने देखा सब!!
गूंज हूँ मैं<
तेरे हर गलत कदम पर उठा
सवाल हूँ<
तेरी गलती की माफ़ी है मेरे पास<
तेरे घमंड को चूर करने का चूरन
भी है!
तेरे ह्रदय के प्रेम का
गुब्बार हूँ>>>
गूंज हूँ मैं,
धरती माँ सा धीरज है<
सवाल हूँ<
तेरी गलती की माफ़ी है मेरे पास<
तेरे घमंड को चूर करने का चूरन
भी है!
तेरे ह्रदय के प्रेम का
गुब्बार हूँ>>>
गूंज हूँ मैं,
धरती माँ सा धीरज है<
तो दुर्गा जैसी खीज भी है!
नादान, नासमझ
कहते है कुछ लोग<
जिस रंग का चश्मा पहना है तुमने<
नादान, नासमझ
कहते है कुछ लोग<
जिस रंग का चश्मा पहना है तुमने<
@गुंजन झाझारिया copyright
लेबल: मेरी कविता
3 टिप्पणियाँ:
jarur Ravi ji..dhanywaad...
गूंज हूँ मैं>>>>
गुंजन करते रहना है मेरा काम..
-ऐसे ही गुँजती रहिये...शुभकामनाएँ.
धन्यवाद उड़न तश्तरी साहब...:)
अपना नाम तो डालिए..
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