गुरुवार, दिसंबर 22

तुलसी--पान सबको चलता है!





चबक-चबक चबाता है!
ताली मार-मार,
रगड़क देकर घिसता है!!
दबाता है एक कोने में,
अन्दर ही अन्दर पिसता है!!!


ना देखता कोई सड़क या गली,
बेशर्मी से थूकता चलता है!
लाल रंग से रंगी सडकें,
फर्श भी लाल-लाल
ही दिखता है!
लिखा होता निषेद यहाँ ,
ना कोई जुर्माना लगता है!

दबाता है एक कोने में,
अन्दर ही अन्दर पिसता है!!!
पुलिस, नेता हो या विद्यार्थी ,
तुलसी ---पान सबको चलता है!
दांत गले या गले शरीर,
बिना फिक्र के उड़ता है!

दबाता है एक कोने में,
अन्दर ही अन्दर पिसता है!!!

कर दिया सब कुछ गन्दा,
बिना शर्म के हँसता है!
ये हालत देख के गलियों की,
कलेजा किसी का ना जलता है!

दबाता है एक कोने में,
अन्दर ही अन्दर पिसता है!!!

बस करो अब थूकना -घिसना,
चबाने भर से घिन आ जाती है!
खौलता है खून यहाँ,
उगाये-पाले गेहूं पर
जैसे कोई घुन लगता है!

दबाता है एक कोने में,
अन्दर ही अन्दर पिसता है!!!

क्या स्वयं के घर की दीवारों पर,
ऐसे ही थूकता चलता है?
निवेदन नहीं है, चेतना है,
उस सड़क और दिवार को बनाने में
तेरा भी पैसा लगता है!!!!

चबक-चबक चबाता है!
ताली मार-मार,
रगड़क देकर घिसता है!!
दबाता है एक कोने में,
अन्दर ही अन्दर पिसता है!!!

---गूंज झाझारिया

{ सार्वजनिक स्थानों को गन्दा ना करें!}


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2 टिप्पणियाँ:

यहां शुक्रवार, दिसंबर 23, 2011, Blogger विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

क्या स्वयं के घर की दीवारों पर,
ऐसे ही थूकता चलता है?
निवेदन नहीं है, चेतना है,
उस सड़क और दिवार को बनाने में
तेरा भी पैसा लगता है.....
दिल कर रहा इसके बड़े-बड़े बैनर बनवा ,
थूकने वालों के पीठ पर चिपका दूँ..... काश ऐसा हो पाता....

 
यहां शुक्रवार, दिसंबर 23, 2011, Blogger गुंज झाझारिया ने कहा…

हाहा विधा जी खूब कही....
धन्यवाद..

 

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