ये लौहे का इंसान!
ईमान से नाता नहीं कोई,
आँखों से कपट छलकता है!
दया न दिखाई कभी निर्बल पर,
रगों में भी नीला रंग बसता है!
बेईमानी शब्द से है इसका गहरा नाता ,
पश्चाताप की परिभाषा से अनभिज्ञ है !
आदर और सम्मान न करे,
अपने सिवाय किसी का,
भावनाओं की चिता जलाता है!
ऐसी गजब की पाचन-क्रिया है,
बस निगलता ही जाये!
उगलने का सवाल नहीं यहाँ पर,
बस पेट के लिए आत्मा बेच आये!
सुख-चैन की चाह नहीं इसको,
बस झूठी आन के पीछे मरता है!
रोबोट बनाते समय भी ये,
अपनी देह बनी जिस माटी से,
वो माटी लगाना भूल गया!
माटी की कहाँ जरुरत अब?
कलयुग में मेरा भगवान् भी
खिलोने लोहे से बनाता है!
भूल से गर बन जाए माटी का,
लौहे की रगड़ से हर दम झड़ता है!
कहाँ गई वो ममता?
कहाँ गया वो रिश्तो का सम्मान...
अरे अचंभित क्यों हो आप सब?
वो तो खा गया ये लौहे का इंसान...
सब खा गया ये लौहे का इंसान!
फिर भी भूखा-२ डोले है!
मशीन बना फिरता है!
हवा में भी तैरता है!
कानो में, हाथो में,
पैरो में, और जहा देखो
मशीन से ही बस चलता है!
मेरी धरती माँ,
मेरे वृक्ष,
मेरे साफ़ बदल,
कुछ भी न छोड़ा इसने!
निगलता जाता सब वरदान,
उगलता जाता धुआं काला काला ,
खा गया सब ये लौहे का इंसान!सब खा गया ये लौहे का इंसान!
आँखों से कपट छलकता है!
दया न दिखाई कभी निर्बल पर,
रगों में भी नीला रंग बसता है!
बेईमानी शब्द से है इसका गहरा नाता ,
पश्चाताप की परिभाषा से अनभिज्ञ है !
आदर और सम्मान न करे,
अपने सिवाय किसी का,
भावनाओं की चिता जलाता है!
ऐसी गजब की पाचन-क्रिया है,
बस निगलता ही जाये!
उगलने का सवाल नहीं यहाँ पर,
बस पेट के लिए आत्मा बेच आये!
सुख-चैन की चाह नहीं इसको,
बस झूठी आन के पीछे मरता है!
रोबोट बनाते समय भी ये,
अपनी देह बनी जिस माटी से,
वो माटी लगाना भूल गया!
माटी की कहाँ जरुरत अब?
कलयुग में मेरा भगवान् भी
खिलोने लोहे से बनाता है!
भूल से गर बन जाए माटी का,
लौहे की रगड़ से हर दम झड़ता है!
कहाँ गई वो ममता?
कहाँ गया वो रिश्तो का सम्मान...
अरे अचंभित क्यों हो आप सब?
वो तो खा गया ये लौहे का इंसान...
सब खा गया ये लौहे का इंसान!
फिर भी भूखा-२ डोले है!
मशीन बना फिरता है!
हवा में भी तैरता है!
कानो में, हाथो में,
पैरो में, और जहा देखो
मशीन से ही बस चलता है!
मेरी धरती माँ,
मेरे वृक्ष,
मेरे साफ़ बदल,
कुछ भी न छोड़ा इसने!
निगलता जाता सब वरदान,
उगलता जाता धुआं काला काला ,
खा गया सब ये लौहे का इंसान!सब खा गया ये लौहे का इंसान!
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