बेटी नहीं बेटा है तू
मेरी बेटा नहीं बेटा है तू:
मुझे मेरे माँ- पापा ने बेटी कि तरह पाला है.
ऐसे ही शब्द मुझे आजकल रोज सुनने को मिलते हैं,
और सोचने पर मजबूर हो जाती हू कि
क्या बेटियां बेटी बन कर नहीं रह सकती?
क्यों उन्हें या तो कैदी बनाया जाये या बेटा बनाया जाये?
मैं अक्सर पढ़ती हू,
कि हमारे यहाँ औरतो कि बहुत क़द्र होती थी,
बिना घूँघट के रहती थी,
पूजा जाता था उन्हें,
त्याग कि मूर्ति थी,
अपनेपन का सागर था उनमे.
फिर एक वक़्त आया
जब उन्हें घूँघट में कैदी बना दिया गया
नौकर कि तरह रखा जाने लगा.
और अब तो प्रकृति को
ललकार दिया,
बेटी को बेटा बना दिया .
और अजीब बात तो ये है,
कि बहुत ख़ुशी होती है,
जब पापा कहते है,
बेटा है मेरा ये.
मुझे तो ये शब्द बिलकुल पसंद नहीं ह,
बेटी हू मैं,
मेरा अपना वजूद है,
प्रक्रति ने दोनों को अलग बनाया है,
मैं बेटा नहीं बनाना चाहती
मैं खुश हू कि मैं आपकी बेटी हू,
और बेटी बनकर ही नाम रोशन करुगी.
क्यों हमारा समाज बेटी को बेटी बनाकर नहीं रख सकता?
क्यों जरुरी है, बेटे शब्द का सहारा उन्हें आगे बढ़ने के लिए.
क्यों कहते हैं,
कि आजकल तो लड़कियां लड़कों से आगे हैं?
आगे जाकर करना क्या है?
दोनों एक ही गाडी के दो पहिये हैं,
लड़की लड़की बनकर रहे
और लड़का लड़का ही रहे
तो क्या सामंजस्य नहीं बन सकता?
तो फिर क्या उन्नति नहीं हो सकती.
जब तक बेटी में बेटी नहीं होगी,
या एक पत्नी में पत्नी नहीं होगी?
तो कैसे ये गाड़ी चल पाएगी?
या फिर,
तलक जरुरी है आने वाली दुनिया के लिए?
मुझे डर ये है कि कही ये
दोनों अपना अलग संसार ही ना बसा ले.
ये कहते हैं,
कि लडकिया लडको के बराबर हैं,
तो क्यों बस में सीट कि जरुरत होती है?
लडको कि तरह खड़े नहीं हो सकते?
अधिकार कि बात हो हम बेटियां हैं,
और
वैसे हम बेटा हैं या बेटों से आगे हैं.
क्यों सम्मान नहीं है,
एक दुसरे के लिए.
एक दुसरे के मन में?
ये एक कविता नहीं है,
मेरे विचार हैं
मेरे सवाल हैं?
आपके क्या विचार हैं?
जरुर बताईगा ..
गुंजन झाझारिया
लेबल: मेरी कविता
2 टिप्पणियाँ:
सबसे पहले गुंजन, बेटा या बेटी मै कोई फर्क नही है सोच में। आज तो परिस्थितिया बहुत बदल चुकी है।मां पिता प्यार से कई श्ब्दो का प्रयोग करते है उसमे भेदभाव नज़र नही आना चाहिये। और अब आपके विचार पढे तो खुशी हुई कि आपने साकारात्मक सोचना शुरु किया है बाकी बेटिया भी अपने मनोबल को इसी प्रकार से आगे बढायेगी.... मैने एक दो कविताओ मे इसी प्रकार अपनी भावनाये प्रकट की थी कि सोच को बदलना होगा...पुरानी कुरितियो को अपवाद समझना होगा..
बहुत ही सुंदर रचना.........कितनी सही और सुंदर सोच है,,,,,बधाई स्वीकार करे।
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