शनिवार, जून 4

हाँ भई


कड़कते कागज के टुकड़े,
भीनी-सी उनकी सुगंध,
किसी पर मुस्कुराता चेहरा,
किसी में हरयाली बंद,

लेकिन कीमत तो उस पर छपे 
अंक की है.....!!!

पहचान तो गए हो न??
हाँ भई,
ये रुपया है,

तेवर इसके अलग ही हैं,
जितना आये, और लालसा बढती जाए 
न हो तो,  रातो की नींद उडाये
गधे को भी बाप बनाये 

हाँ भई,
ये छुआछुट की बीमारी है!!!

तेरे पास है, 
मेरे पास भी होना चाहिए 
तू खिलाये 
मुझे जरुर खाना चाहिए,
कही से भी लाऊ,
पर रुपया मुझे तुझसे ज्यादा  चाहिए!!!

हाँ भई,
ये ईमान का दीमक है!!

सरे काले कर्म करवाए!!
तराजू के आगे भी,
पक्षपात दिखाए!!
अपनों का ही 
ह्रदय बिकवाये!!!
और फिर,
पाप पर पर्दा डालने के भी 
रुपया ही तो काम आये!!!

हाँ भई,
भावनाओ का खंजर है ये,

अपने ही बाप को
वर्द्ध आश्रम भिजवाए,
अपने बालक का बचपन 
देखने को तरसाए,

अपनी अर्धांगिनी 
को जिन्दा जलवाए....
इंसानियत का रोज 
फुटपाथ पर तमाशा बनवाए...

हाँ भई,
जो भी हो,
प्रतिष्ठा का सूचक ह ये,
बड़ी बड़ी गद्दी पर बिठाये,
चमचो की लाइन लगवाए,
हर एक भूल को माफ़ करवाए,
हर अपने को करीब लाये,
दोस्तों का मेला लगवाए,
सभी को 
ये रुपया भाए..


लक्ष्मी पूजन करवाऊ मैं,
आँगन में रंगोली सजाऊ,
दीपक से घर जगमगाऊ,
द्वार पर निम्बू लटकाऊ,

हाँ भई,
अब तो रुपया आना चाहिए..

कड़कते कागज के टुकड़े,
भीनी-सी उनकी सुगंध,
किसी पर मुस्कुराता चेहरा,
किसी में हरयाली बंद,

लेकिन कीमत तो उस पर छपे 
अंक की है.....!!!

हाँ भई ,
अब तो रुपया आना चाहिए...




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