घर की छत का अहसास...
मेरे घर की छत का अहसास...
हर शाम दिन का हिसाब करती इच्छाओं की आवाज़...
कहीं कुछ छूटा तो नहीं,
क्या खोजा आज..
सिरहन करती आवाजे,
क्या कुछ मेरे पास..
मेरे घर की छत का अहसास...
हर शाम दिन का हिसाब करती इच्छाओं की आवाज़...
कल की बिमारियों की पर्ची,
कल के सारे परहेज के साथ...
खुलते लालच को बांधती मैं..
कैसे बचाई जाए लाज..
मेरे घर की छत का अहसास...
हर शाम दिन का हिसाब करती इच्छाओं की आवाज़...
प्रेम की खोज को निकल पड़ता एक भाग,
दूर घाटी , ऊँचे आकाश....
करती इंतज़ार उसका रोज,
बुढा हो लौटता वो निराश..
मेरे घर की छत का अहसास...
हर शाम दिन का हिसाब करती इच्छाओं की आवाज़...
होड़ ही करनी है उम्र भर,
जीते जी , चलती साँस...
हिसाब लगाना जी पड़ता...
कितनी बाकी है अब प्यास.....
मेरे घर की छत का अहसास...
हर शाम दिन का हिसाब करती इच्छाओं की आवाज़...
हर शाम दिन का हिसाब करती इच्छाओं की आवाज़...
कहीं कुछ छूटा तो नहीं,
क्या खोजा आज..
सिरहन करती आवाजे,
क्या कुछ मेरे पास..
मेरे घर की छत का अहसास...
हर शाम दिन का हिसाब करती इच्छाओं की आवाज़...
कल की बिमारियों की पर्ची,
कल के सारे परहेज के साथ...
खुलते लालच को बांधती मैं..
कैसे बचाई जाए लाज..
मेरे घर की छत का अहसास...
हर शाम दिन का हिसाब करती इच्छाओं की आवाज़...
प्रेम की खोज को निकल पड़ता एक भाग,
दूर घाटी , ऊँचे आकाश....
करती इंतज़ार उसका रोज,
बुढा हो लौटता वो निराश..
मेरे घर की छत का अहसास...
हर शाम दिन का हिसाब करती इच्छाओं की आवाज़...
होड़ ही करनी है उम्र भर,
जीते जी , चलती साँस...
हिसाब लगाना जी पड़ता...
कितनी बाकी है अब प्यास.....
मेरे घर की छत का अहसास...
हर शाम दिन का हिसाब करती इच्छाओं की आवाज़...
लेबल: मेरी कविता
1 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ