बुधवार, अक्टूबर 3

महोब्बत को जिन्दा रखो

इन उठती-गिरती हवाओं को बस में करना है तो???

अपनी महोब्बत को जिन्दा रखो..
अपने जिगर में सांसे रखो..
अपनी रूह में जान रखो...

इन उठती-गिरती हवाओं को बस में करना है तो???

आसमान तले ईमान रखो..
भूमि पर सार रखो....
जल में बहता भाव रखो..

इन उठती-गिरती हवाओं को बस में करना है तो???

स्वयं पर विश्वास रखो..
उँगलियों में तलवार रखो..
जिव्हा पर तार रखो...

इन उठती-गिरती हवाओं को बस में करना है तो???
अपनी महोब्बत को जिन्दा रखो........

@गुंजन झाझरिया 

लेबल:

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ