मंगलवार, अक्टूबर 2

"वक्त नहीं रुकता"




जब गुजरती थी हवा तुझसे होकर,
वो हवा कुछ ताज़ा सी हो जाती थी..
खिल जाते थे फूल आंगन के,
महक जाती थी मैं भी..

सुना है, वक्त नहीं रुकता!
मेरा वक्त तो वहीँ रुका है!!

ना आंगन के फूलों की सुबह हुई,
ना पत्ते हिले, ना हवा महकी...
अभी दूर तेरी मुस्कुराती आंखें दिखी..
तेरी लंबी पदचाप सुनी...

सुना है, वक्त नहीं रुकता!
मेरा वक्त तो वहीँ रुका है!!

वो गुलाब के फूल, 
जिनमे जिंदगी नज़र आती थी..
आज सूख गए हैं..
सारे वादे-इरादे अब भी साथ हैं..

सुना है, वक्त नहीं रुकता!
मेरा वक्त तो वहीँ रुका है!!

वो चाबी का छल्ला, और दरवाजे के घंटी...
रूह को छू कर गयी हर मुलाकात..
जाते समय जोर से की दरवाजे वाली आवाज़.
सब कुछ तो पास है....

सुना है, वक्त नहीं रुकता!
मेरा वक्त तो वहीँ रुका है!!
उतना ही ताज़ा और खास है...
वही कुछ खो देने का...
सब कुछ पा लेने का अहसास है!!!!
गुंजन झाझारिया

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2 टिप्पणियाँ:

यहां गुरुवार, अक्टूबर 18, 2012, Blogger संजय भास्‍कर ने कहा…

ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

 
यहां गुरुवार, अक्टूबर 18, 2012, Blogger संजय भास्‍कर ने कहा…

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