बुधवार, अक्टूबर 17

अथाह प्रेम

'ऊँची गहरी साजिशें करता कोई,
सहमा सा बस जलता कोई..
प्रेम को अपनाने की जिद में,
कंधो पर प्यार लिये,
रात भर डरता कोई....'

"प्रेम अपनाने से क्या होगा?
क्या पाया वही प्रेम होगा?
जलते तो यूँ भी हो,
उसको पाकर सिमटता ही हर कोई..."


'अथाह तो होगा ही,
समंदर की तरह...
गहरे में उतरकर.
जल में डूब कर ही तरता कोई..'

"समंदर तो खारा ठहरा,
प्यासे ही रह जाना है..
तरता तो गंगा में है..
उसी तट पर रमता कोई..."

'मुझे बस पाना है..
पाकर ही सजता कोई..
उसे हासिल करना है ,
उसी के लिए जीता कोई...'

"अपनाओगे कैसे?
बस पाने के लिए इतनी जलन?
पीकर ही जल सकता कोई..
अपनाकर ही खो सकता कोई..."

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3 टिप्पणियाँ:

यहां गुरुवार, अक्टूबर 18, 2012, Blogger संजय भास्‍कर ने कहा…

ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

 
यहां गुरुवार, अक्टूबर 18, 2012, Blogger Unknown ने कहा…

प्रेममयी है आपकी, रचना बेहद खास |
शब्दों में सुन्दर दिखा, आपका अहसास ||

नई पोस्ट:- ठूंठ

 
यहां रविवार, मार्च 10, 2013, Blogger Dinesh pareek ने कहा…

बहुत खूब सार्धक लाजबाब अभिव्यक्ति।
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे

 

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