शनिवार, सितंबर 28

देखे जा रंग तु ,


इरादें हो अगर आसमानो पर,
मौहल्ले की गली छोटी लगती!
जो सामने हो महल भी,
उसकी नीव कच्ची लगती !!
हुनर चाँद को पाने का,
हर छत से सीढी लगती!
गुब्बारों में भरी हवा
छोटे गालों से ही निकलती!
श्याम रहेगा तो सुंदर भी,
गौर वर्ण से सुर्याश्मी निकलती!!
आह क्या भव्य जग,
जंग भी कर्मभूमि रंगती!!
अब देखे जा रंग तु ,
ये सोच तो दुनिया पलटती!!!! 

कितने दिनों बाद मेरा हिंदी फॉण्ट मिला है!एक कविता तो बनती थी..
अब आपका लाइक भी बनता है!
Gunj Jhajharia

लेबल:

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ