शनिवार, जून 4

संसार.............


अपनी ही धुन पे सवार,
किसी और के प्यार पर  निसार,
अपना साहस, अपना हथियार,..मीठी सी सुगंध के साथ ज्यू हो 
हल्की सी बयार,
एक अकेले का बाज़ार!

मासूम मन का सुन्दर सा संसार!!!

सब रंगों से परे एक नए रंग में होता हैं,
सारी लोरिया छोड़ अपने राग में सोता  हैं....बिन तूफ़ान के राह चलते खोता है.....
हथेली में कम पड़ जाये लकीर,
तो कभी आँखों से निकलते मोती की धार 
,और 
कभी गालों पर गिरती मुस्कान जोड़ लेता  हैं....

जीते हुए मन का ईनाम सा संसार!!!

 
कुछ-एक पंछी जमीन पर चलते हैं,..
हर मछली को पीछे छोड़ 
कुछ सांप पानी में भी रहते है...
आस-पास
सब एक जैसे न हो,
तो भी क्या? 
अजूबे से मन का अलबेला सा संसार !!!

पांव पड़े धरती पर, 
लगा उसे इसी आहट का अहसास था..
साँस ली तो हवा पर
इसी का नाम सवार था..
देखते ही खिल गए हैं फूल..
भवरे को भी यही इंतज़ार था..
सूरज तो पड़ गया हैं हल्का,
चाँद अपनी ऊंचाई पर है,

स्वप्न से मन का बोलता सा संसार....

सफ़ेद कागज पर स्याही की बूँद ,
रेखाओ में चेहरा दिखता,
कही पानी से भरा बादल,
और कही 
देखा बिजली को 
चीखता,

इन सब के बीच गुनगुनाते मन  का  " गुंजन " सा  संसार..............

@copyrightGunjan Jhajharia 

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