शुक्रवार, अगस्त 24

बैचैनी वाला इंतज़ार


क्या तुमने इंतज़ार किया है इतना कभी?
सावन की पहली फुहार में भी,
उसके अगले बरस लौट आने का इंतज़ार होता है ..
जो है हाथ में उसे ही पाने का इंतज़ार होता है.
जो रात दिन आपके इर्द-गिर्द चक्कर काटता है, 

उससे मिलन का इंतज़ार होता है..


जो चीज़ आपके पास है,
उसका भला कोई इंतज़ार होता है?
जी..होता है..
सबसे अदभुत, और बैचैनी वाला इंतज़ार होता है..
रात-दिन भीतर उगने और बढ़ने वाले घास जैसा होता है..
पहले लगे तो खाद दे.बाद लगे तो फसल बिगाड दे..
ऐसा इंतज़ार होता है!

उम्मीद के दरख्तों पर उगती डालियाँ होती हैं..
दूर का क्षितिज भी मिलन दर्शाता है..
भरी दोपहरी में उस प्यासे को,
चंद कदमो दूर पानी नजर आता है..
जब चाय का प्याला हाथ में हो,
उसके हाथ की चाय का इंतज़ार होता है...
कितने ही अबोध मन से घिरे रहो,
उसके तुतलाने का इंतज़ार होता है..

अब समझे?
ये कौनसा इंतज़ार होता है?
बोलो अब?
क्या कभी तुम्हें बैचैन करने वाला,
इंतज़ार तुम्हारा होता है?

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