शुक्रवार, अगस्त 24





भीतर-२ एक लौ जल रही थी बरसो से,
आज उसकी रौशनी चहुँ ओर चमकती दिखाई दी..
अपने जैसा ही संसार को पाया मैंने...
दुनिया मेरी परछाई सी बनती दिखाई दी..:)
copyright-गुंज झाझारिया

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