शुक्रवार, अक्टूबर 18

सुंदर, अति सुंदर


सामने खड़ा वक़्त भी आज,
घुटने टेक ताक रहा..
अचंभित, मौन तू..
उसको क्यों झांक रहा?
बन श्वेत, माफ़ कर.
भुला पिछला, अब स्वांस भर.
अवसर है, साहस भी..
वो बैठे जितना
उतना दौड़ लगा.
हिमालय था सागर कभी,
तू तो फिर इंसान बना..
गढ़ कहानी-किस्से,
जब समय तेरा दास बना..
होगा क्या इस गद्दी का?
योजना वैसी तू न बना.
आज दमक है तेरी..
अपनी खनक सबको सुना..
जी इस पल को जितना चाहे,
रंगीन रौशनी खुद को बना..
बाँट प्रेम की गोलियां..
सुंदर, अति सुंदर,
"आज" को दे सजा..
गूंज झाझारिया

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2 टिप्पणियाँ:

यहां शुक्रवार, अक्टूबर 18, 2013, Blogger Unknown ने कहा…

सुन्दर रचना |

मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"

 
यहां गुरुवार, नवंबर 14, 2013, Blogger गुंज झाझारिया ने कहा…

धन्यवाद

 

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